सामान्य ज्ञान - ब्लड ग्रुप की खोज किसने और कब की
आज मैं आपको बताऊंगा उस आदमी की कहानी जिसने हमारा परिचय ब्लड ग्रुप से करवाया ब्लड ग्रुप एक अंग्रेजी शब्द है इसको हिंदी में रक्त समूह कहते हैं| आपने देखा होगा की डॉक्टर जब भी रक्त की जांच करते हैं तो एक ब्लड ग्रुप बताते हैं जैसे की ब्लड ग्रुप A, ब्लड ग्रुप B
आमतौर पर पहले ये माना जाता था की अच्छे आदमी में अच्छा खून होता है और गंदे आदमी में गन्दा खून होता है ये एक आम धारणा थी इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था यही बात कार्ल लैंडस्टीनर(Karl Landsteiner) को परेशान करती थी कार्ल लैंडस्टीनर(Karl Landsteiner) दिन रात चिंतन करते अध्ययन करते |
कार्ल लैंडस्टैनर (Karl Landsteiner ; 14 जून, 1868 – 26 जून, 1943), आस्ट्रिया के एक जीववैज्ञानिक तथा चिकित्सक थे। कार्ल लैंडस्टीनर(Karl Landsteiner) जानते थे की रक्त में कुछ है लेकिन बहुत गौर से देखने पर भी रक्त की लालिमा के कुछ नहीं दिख रहा था कार्ल लैंडस्टीनर(Karl Landsteiner) को | सेकड़ों नमूनों की जाँच की लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी |
बत्तीस वर्ष की आयू तक हज़ारों पोस्टमार्टम कर चुके थे हर जगह एक ही प्रश्न का जवाब खोजते की आखिर रक्त का रहस्य क्या है? घंटो माइक्रो स्कोप से रक्त में कुछ तलाशते रहते | बीसवीं सदी आ चुकी थी लेकिन आज तक लोग मानते थे की खून दो तरह का होता है अच्छा खून और गन्दा खून|
कार्ल लैंडस्टीनर(Karl Landsteiner) की जिद के आगे आखिरकार रक्त हार गया, कहते हैं ना जब कोई काम शिद्दत से किया जाये तो सारा ब्रह्माण्ड साथ देता है और वो सुनहरा दिन आ गया, साल 1900 चल रहा था | प्रयोगशाला में एक दिन जांचते परखते ‘क’ लाल कोशिकाओं को ‘ख’ रक्त बूंदों से मिलाया तो दोनों देखा दोनों का व्यवहार एक दुसरे से विपरीत था रक्त के थक्के बन गये|
दुसरे प्रयोग में उन्होंने पाया की जब ‘क’ लाल कड़ों के साथ ‘ग’ लाल कड़ों को आपस में मिलाया तो दोनों समूह आपस में सहजता से मिल गए| जब कार्ल लैंडस्टीनर(Karl Landsteiner) ने अपने अनुभव को अन्य डॉक्टर साथियों के साझा किया तो डॉक्टर साथियों ने ये कह कर इस प्रयोग के उपर प्रश्नचिन्ह लगा दिया की जो रक्त कण आपस में नहीं मिले वो किसी रोग का लक्षण है| जिससे रक्त लिया गया है, उसे कोई रोग होगा|
कार्ल लैंडस्टीनर(Karl Landsteiner) ने इस चुनौती कोई स्वीकार किया और स्वस्थ लोगों के रक्त के नमूने जुटाने शुरू किये| एक सफल व्यक्तित्व की पहचान है की वो हार नहीं मानता जब तक की उसका लक्ष उसको प्राप्त न हो जाये| रक्त से रक्त को मेल करने का प्रयोग फिर शुरू किया गया फिर वही नतीजे प्राप्त हुए कुछ रक्त कणों ने थक्के बना लिए कुछ आपस में मिल गए| एक बात समझ में आई रक्त के थक्कों से बीमारी का कोई लेना देना नहीं है| जो रक्त कण आपस में मिल नहीं रहे वो थक्के बनाकर नष्ट हो जाते हैं और जो मिल रहे है वो एक समान हैं| इसका मतलब हुआ की सबका रक्त एक समान नहीं है तो एक दूसरा प्रश्न खड़ा हो गया की रक्त कितने प्रकार का होता है?
रक्त के रहस्य को समझने के लिए कार्ल लैंडस्टीनर(Karl Landsteiner) ने सैकड़ों और नमूनों की जाँच की और सफलता मिलने लगी तो पूरी टीम को लगा दिया और दुनिया को बताया की तीन तरह के रक्त समूह हैं- A, B और C (बाद में C ही O कहलाया ) |
लगभग एक वर्ष बाद एक नए रक्त समूह ‘AB ’ का और पता चल गया| कार्ल लैंडस्टीनर(Karl Landsteiner) ने रक्त के मिलान या आदान-प्रदान का एक चार्ट बना दिया की कौन-सा रक्त किससे मिल सकता है|
रक्त के मेल में अभी भी समस्याएं आ रही थी, तो समाधान के लिए एक अन्य वैज्ञानिक के साथ मिलकर आरएच फैक्टर की खोज हुई | रक्त का माइनस प्लस तय हुआ| अब दुनिया जान गयी की आठ प्रकार के रक्त चार समूहों में होते हैं|
चिकित्सा के क्षेत्र में इस खोज से क्रांति आ गयी | रोग प्रतिरक्षा विज्ञान के महारथी कार्ल लैंडस्टीनर(Karl Landsteiner) आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं| उनके आविष्कार की वजह से आगे चलकर रक्तदान के तौर तरीके बने| ब्लड बैंक की स्थापना संभव हुई| कार्ल लैंडस्टीनर(Karl Landsteiner) को 1930 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया|
एक बात तो मैं भूल ही गया| कार्ल लैंडस्टीनर(Karl Landsteiner) ने ही पोलियो वायरस की खोज की| शोध के लिए खुद को समर्पित कर देने वाले इस महान डॉक्टर के जन्मदिन 14 जून को विश्व रक्तदाता दिवस मनाया जाता है|
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