Shikshaprad Kahani - Sone Ki Kulhadi Story In Hindi
सोने की कुल्हाड़ी
आज मैं आपको एक लकड़हारे की कहानी सुनाता हूँ ये कहानी मेरी नानी ने मुझको बचपन में सुनाई थी| इस कहानी से आपको सीखने को मिलेगा की लालच क्यों नहीं करना चाहिये| लकड़हारा कहते हैं लकड़ी काटकर जो लोग बेचा करते हैं उनको|
कहानी है राजू लकड़हारे की | राजू बहुत गरीब था, बहुत मेहनती और सीधा सच्चा आदमी था | राजू दिन भर जंगल में सूखी लकड़ी काटता और शाम होने पर लकड़ी का गठ्ठर बांधकर बाजार ले जाता लकड़ियों के बेचने पर जो पैसे मिलते उनसे वो अपने परिवार की जरूरतें पूरी करता, राजू को अपने काम से संतोष था | राजू का जीवन मजे से चल रहा था |
एक दिन राजू लकड़ी काटने जंगल में गया, जंगल में नदी किनारे सूखी लकड़ी काटने के उद्देश्य से एक पेड़ पर चढ़ गया| डाल काटते समय उसकी कुल्हाड़ी नदी में गिर गयी| राजू पेड़ से उतरकर आया और नदी में कुल्हाड़ी लाने के उद्देश्य से कूद गया| उसने नदी में कुल्हाड़ी को काफी खोजा लेकिन कुल्हाड़ी नहीं मिली|
राजू दुःखी मन से नदी के किनारे बैठ गया, और सोचने लगा की उसका जीवन बिना कुल्हाड़ी के कैसे चलेगा, उसकी आँखों से आंसू बहने लगे उसके पास दूसरी कुल्हाड़ी खरीदने के पैसे नहीं थे|
राजू को देखकर वन के देवता को राजू पर दया आ गयी और बालक का रूप धारण करके प्रकट हो गए और बोले भाई भाई तुम क्यों दुखी हो ? राजू ने बालक को देखा और बोला तुम मेरी परेशानी नहीं समझ सकते हो तुम अभी बहुत छोटे हो| बालक ने पुनः राजू से कहा तुम अपनी परेशानी बताओ तो सही शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूँ| राजू ने बड़े ही अनमने मन से बालक को अपनी परेशानी बता दी | बालक के रूप में राजू से वन देवता बोले मैं तुम्हारी कुल्हाड़ी नदी में से लाकर देता हूँ तुम दुखी ना हो|
बालक ने नदी में छलांग लगा दी| बालक ने पानी में डुबकी लगायी और एक सोने की कुल्हाड़ी लेकर निकले और राजू से बोले तुम अपनी कुल्हाड़ी ले लो|
राजू ने जब कुल्हाड़ी को देखा तो बालक से बोला ये कुल्हाड़ी तो किसी बड़े आदमी की कुल्हाड़ी है| मैं गरीब आदमी हूँ मेरे पास सोने की कुल्हाड़ी कैसे हो सकती है यह तो सोने की कुल्हाड़ी है|
बालक रूपी देवता ने दूसरी बार फिर डुबकी लगाई और चांदी की कुल्हाड़ी निकालकर राजू को देने लगे|राजू बालक से दुखी होकर बोला बेटा मेरा भाग्य खराब है तुमने मेरे लिए बहुत कष्ट उठाया लेकिन मेरी कुल्हाड़ी नहीं मिली मेरी कुल्हाड़ी तो साधारण लोहे की है|
बालक रूपी देवता ने तीसरी डुबकी लगाकर राजू की लोहे की कुल्हाड़ी निकाल कर दे दी| राजू अपनी कुल्हाड़ी देखकर प्रसन्न हो गया उसने बालक को बहुर सारी दुआएं दीं और अपनी कुल्हाड़ी ले ली| बालक रूपी देवता राजू की सच्चाई और ईमानदारी बहुत प्रसन्न हुए और अपने असली रूप में आकर राजू से बोले मैं तुम्हारी सच्चाई और ईमानदारी से बहुर प्रसन्न हूँ तुम ये दोनों कुल्हाड़ी भी ले जाओ|
राजू सोने और चांदी की कुल्हाड़ी पाकर धनी हो गया| वह अब लकड़ी काटने नहीं जाता था| अब राजू कटी हुई लकड़ी का व्यापार करने लगा| उसके पड़ोसी घनश्याम ने एक दिन राजू से उसकी धनी होने का राज पूछा की तुम्हारे पास लकड़ी का व्यापार करने के लिए धन कहाँ से आया? सीधे स्वभाव के राजू ने घनश्याम को सब बातें सचसच बता दीं |
घनश्याम लालची और आलसी प्रवर्ती का आदमी था उसने सोचा मैं भी अपनी कुल्हाड़ी नदी में गिराकर सोने और चांदी की कुल्हाड़ी ले आता हूँ मैं भी धनी हो जाऊंगा| दूसरे दिन घनश्याम अपनी लोहे की कुल्हाड़ी लेकर उसी पेड़ पर चढ़ गया जिस पर से राजू की कुल्हाड़ी गिरी थी|
घनश्याम ने अपनी कुल्हाड़ी जानबूझकर नदी में गिरा दी और पेड़ के नीचे आकर जोर जोर से रोने लगा| उसकी ये हरकत वन देवता देख रहे थे, वन देवता घनश्याम को सबक देने के उद्देश्य से बालक के रूप में घनश्याम के सामने प्रगट हो गये और घनश्याम से उसके रोने का कारण पूछा घनश्याम ने अपनी कुल्हाड़ी नदी में गिरने की बात बालक रूपी देवता को बताई|
घनश्याम की बात सुनकर बालक रूपी देवता ने कहा मै तुमको कुल्हाड़ी लाकर देता हूँ और बालक रूपी देवता ने नदी में डुबकी लगाकर सोने की कुल्हाड़ी निकालकर दी घनश्याम को तो सोने की कुल्हाड़ी ही चाहिये थी घनश्याम सोने की कुल्हाड़ी देखकर चिल्लाकर बोला हाँ यही है मेरी कुल्हाड़ी| बालक रूपी देवता उसकी इस हरकत से नाराज होकर बोले घनश्याम तुम बहुत ही लालची और आलसी हो तुम यहाँ पर सोने की कुल्हाड़ी लेने आये हो में ये बात जानता हूँ ये बात कहकर बालक रूपी देवता ने सोने की कुल्हाड़ी नदी में फेंक दी और अंतर्धान हो गए|
घनश्याम की चाल नाकाम हो गयी और घनश्याम की लोहे की कुल्हाड़ी भी नदी में गिर गयी| घनश्याम बिना कुल्हाड़ी के घर वापस आ गया| लालच के कारण घनश्याम को अपनी कुल्हाड़ी से और हाथ धोना पड़ा| इस कहानी से हमको शिक्षा मिलती है की हमको लालच नहीं करना चाहिये|
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें