shikshaprad kahani - prabandhak ki niyukti
प्रबन्धक की नियुक्ती
सेठ रतन लाल जी ने एक भव्य मंदिर का निर्माण समाज सेवा के उद्देश्य से करवाया| मंदिर में उन्होंने एक निःशुल्क औषधालय निर्माण करवाया| सेठ रतन लाल जी की ईश्वर में गहरी आस्था थी और वो समाज की भलाई के लिए कुछ ना कुछ प्रयत्न करते रहते थे| उनको सामाजिक कार्यों को करके बड़ा ही आनन्द प्राप्त होता था| उन्होंने मंदिर में दीन दुःखियों और साधू संतो के लिए निःशुल्क औषधालय का निर्माण तो करवा ही दिया था, उनके मन में एक धर्मशाला के निर्माण का विचार और आ गया सो उन्होंने एक धर्मशाला का निर्माण और करवा दिया| अब उनको एक प्रबन्धक की आवश्यकता महसूस हुई जो मंदिर, धर्मशाला और निःशुल्क औषधालय का संचालन कर सके रखरखाव कर सके|
प्रबन्धक पद के लिए उनके पास बहुत लोग आये| वे सभी लोग जानते थे की यदि प्रबन्धक का पद उनको मिल गया तो सेठ जी से वेतन मोटा मिलेगा| सेठ जी सभी लोगों से उनकी योग्यता अनुभव के बारे में बात करते लेकिन उनको सन्तुष्टि नहीं होती और वो सभी लोगों को लौटा देते|
सेठ जी के मन में क्या चल रहा है कोई नहीं जानता लेकिन ये सभी जानते थे की सेठ जी को जमीनी स्तर का अनुभव है वो जो भी निर्णय लेंगे सही लेंगे| बहुत से लोग सेठ जी को मन ही मन कोसते भी थे क्योंकि उनका स्वार्थ सिद्ध नहीं पाया उनको प्रबन्धक का पद प्राप्त नहीं हुआ| इसी प्रकार समय बीतता चला गया| कुछ दिनों बाद प्रतिदिन की तरह मंदिर के कपाट खुले बहुत सारे लोग दर्शनों को रोज आया करते थे| लेकिन इस दिन एक साधारण से कपड़े पहने एक युवक दर्शनों के लिये आया, ये युवक ज्यादा पढ़ा लिखा भी नहीं लग रहा था, इस युवक ने पहले मन्दिर में दर्शन किया फिर औषधालय की तरफ गया और वहां पर औषधालय में आये हुए रोगीओं की मदद करने लगा अपना क्रम आने पर अपनी औषधि लेकर वापस मंदिर के प्रांगण में आया वहां पर उसकी नजर एक ईंट के टुकड़े पर पड़ी जो लोगों को गिरा देता था इस युवक ने मन्दिर के मजदूर से फावड़ा लेकर उस ईंट के टुकड़े को निकाल दिया और जमीन को समतल कर दिया ये घटना क्रम सेठ जी बहुत ध्यान से देख रहे थे और मुस्करा रहे थे सेठ जी ने इस युवक को अपने पास बुलाया| युवक बुलावा सुनकर थोड़ा घबड़ा गया था वो सेठ जी के पास आकर बोला सेठ जी मुझसे क्या अपराध हुआ? यदि मुझसे कोई अपराध हुआ है तो आप मुझे क्षमा करने की कृपा करें ऐसा युवक ने सेठ जी से कहा |
सेठ जी ने युवक को शांत करते हुए युवक से बोला क्या तुम इस मन्दिर के प्रबन्धक बनना पसंद करोगे? युवक बड़े ही आश्चर्य से सेठ जी से बोला आप मुझे ये पद क्यों देना चाहते हो आप तो मेरी योग्यता और मेरा अनुभव नहीं जानते हो? सेठ जी उस युवक से बोले योग्यता और अनुभव तो बाद में आते हैं सबसे पहले आती है नीयत यदि तुम्हारी नीयत साफ़ है आप व्यवस्था सही करना चाहते है तो योग्यता और अनुभव दोनों ही व्यक्ति अर्जित कर सकता है, मैंने तुमको औषधालय में व्यवस्था को सम्हालते हुए देखा जबकि तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं बनती फिर भी तुमने व्यवस्था सम्हाली तुमने मन्दिर के प्रांगण से ईंट के टुकड़े को हटा कर जमीन को समतल कर दिया बहुत सारे लोगों ने इस ईंट के टुकड़े को देखा लेकिन किसी ने भी कोई प्रयास नहीं किया लेकिन तुमने इस समस्या को बिना किसी स्वार्थ के समाप्त कर दिया जबकि तुमको मालुम था की तुमको इसका कोई इनाम या पारिश्रमिक नहीं मिलेगा|
युवक मुस्कराकर सेठ जी से बोला ये प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य है की जहाँ भी हो वहाँ की व्यवस्था को सम्हालने में मदद करे ये तो बेहद साधारण एक मनुष्य का व्यवहार है| सेठ जी बोले आजकल लोग साधारण व्यवहार को भूलकर कुछ असाधारण करना चाहते है पर वो ये भूल जाते हैं की कुछ असाधारण करने का रास्ता अपने साधारण कर्मो के पालन से होकर जाता है मैंने तुम्हारे अंदर वो योग्यता देखी है इसलिए में तुमको प्रबन्धक का पद सम्हालने के लिए ख रहा हूँ|
युवक ने सेठ जी की बात सुनकर प्रबन्धक का पद सहर्ष स्वीकार कर लिया और मन्दिर की व्यवस्था सम्हालने में व्यस्त हो गया|
इस कहानी से हमको सीखने को मिलता है की यदि हम अपने जीवन में साधारण कार्य भी जिम्मेदारी से करें तो हम असाधारण बन जाते हैं|
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